जिसे तुम अपना घर कहते हो वह घर नहीं सराय हैं क्यों? | Motivational Story In Hindi – Your Queries | Best 01 Real Story In Hindi



motivational story in hindi – your queries जिसे तुम ‘अपना घर’ कहते हो वह घर नहीं ‘सराय’ है क्यों ? 

motivational story in hindi – जिस छत के नीचे लोग रहते हैं उसे लोग ‘ अपना घर ‘ कहते हैं ।

अपने रहने के लिए कोई विशाल भवन बनाता है तो कोई महल का निर्माण करवाता है , क्या वह व्यक्ति उस महल में सदैव स्थायी रूप से रहेगा । उस भवन या महल को वह एक न एक दिन छोड़कर चला जायेगा तब उस भवन का कोई दूसरा मालिक होगा । फिर उसके जाने के बाद कोई तीसरा मालिक होगा ।




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 ऐसे ही एक प्रसंग का दृष्टान्त है । अमेरिका के एक बहुत ही ऊँचे दर्जे के अधिकारी का भवन था । दरवाजे पर हाथ में रायफल लिये एक गेट कीपर खड़ा था तभी एक फकीर उधर से गुजरा । उसकी नजर ऊँचे संगमरमर से बने भवन पर पड़ी । वह ठिठक कर रुक गये और गेटकीपर से जाकर बोले – महाशय इस सराय में क्या मैं एक रात के लिए ठहर सकता हूँ ?

आप देख रहे है…motivational story in hindi

गेटकीपर फकीर की बात सुनकर कुछ कड़वे स्वर में बोला – बाबा यह सराय नहीं है , हमारे साहब का महल है । 

गेटकीपर की बात सुनकर फकीर हँसा – महल , कैसा महल ? किसका महल ? जहाँ तक मुझे याद है कि यह एक सराय है जहाँ दूर – दराज से आने वाले मुसाफिर आकर रात बिताते हैं और चले जाते हैं ।

गेटकीपर फकीर की बातों पर गुस्सा हो गया और फकीर उस भवन को महल मानने को तैयार ही न था । इस तरह दोनों के बीच तकरार बढ़ गयी और आवाज अधिकारी तक पहुँच गयी वह अपने कक्ष ( कमरे ) से निकलकर बाहर आया और पूछने लगा – फकीर बाबा ! क्या बात है ?

 फकीर ने एक नजर अधिकारी को देखा तथा बोला – बेटे ! यह ऊँचा मकान जिसमें से तुम निकलकर आये हो , यह मुसाफिरों की सराय है न , और यह बन्दूक वाला ( गेटकीपर ) इसे कहता है कि मेरे साहब का महल है ।



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तब अधिकारी ने कहा- हां बाबा ! बन्दूक वाला सही कहता है । यह मेरा महल है । गलत , सरासर गलत ।

फकीर बोला । यह महल नहीं , सराय है क्योंकि बहुत दिन पहले जब मैं आया था तो इसमें कोई दूसरा रहता था । अधिकारी ने कहा – वह मेरे पिता जी थे । फकीर पुनः बोला- उसके पहले आया था तो उस समय कोई तीसरा रहता था ।

 अधिकारी ने कहा – वह मेरे दादा जी थे । तब फकीर ने कहा – बेटे ! जहाँ रहने वाले हमेशा बदलते रहते हैं । वह सराय ही तो होती है । यह सुनते ही अधिकारी को फकीर की बातों का अर्थ समझ में आ गया । वह फकीर के पैरों पर गिर पड़ा और विनयपूर्वक बोला – आपकी बात सत्य है ।

यह महल नहीं , सराय है । बाबा । आप एक नहीं , जितना दिन रहना चाहो रह सकते हो । अपने अधिकारी की बात सुनकर गेटकीपर अवाक् रह गया जबकि फकीर मुस्कुराता हुआ आगे बढ़ गया । ऐसा ही एक पौराणिक उदाहरण मिलता है ।

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एक बार देवराज इन्द्र ने अमरावती ( इन्द्रपुरी ) में बहुत ही सुन्दर भवन का निर्माण कराया । जब भवन पूरी तरह बनकर तैयार हो गया । उसकी भली प्रकार से सजावट आदि हो गयी तब एक दिन उन्होंने ‘ नारायण कीर्तन ‘ करते हुए जा रहे नारद जी को मार्ग में रोककर कहा –



देवर्षि ! मैंने एक बहुत ही सुन्दर महल बनवाया है । कृपा करके मेरे महल को चलकर देखें और बतायें कि कैसा बना है ? पहले तो नारद जी मन ही मन मुस्कुराये ।

 फिर प्रत्यक्ष में बोले – हे देवराज ! मुझे महलों की परख आदि का ज्ञान नहीं है क्योंकि मैं ‘ रमता जोगी , बहता पानी ‘ हूँ । मेरा अपना तो कोई महल है नहीं , मुझे क्या पता कि अच्छा या सुन्दर महल कैसा होता है और खराब महल कैसा होता है ।

हाँ पृथ्वीलोक पर एक ऋषि रहते हैं जो कई हजार वर्षों से पृथ्वी लोक में निवास कर रहे हैं , आप उनके पास जाइये । वे अवश्य बतायेंगे । उनका नाम ‘ लोमश ऋषि ‘ है ।

 देवराज इन्द्र अपने ऐरावत हाथी पर सवार होकर उसी क्षण लोमश ऋषि के पास गये और प्रणाम करके एक ओर खड़े हो गये । ऋषि ध्यान मग्न थे । देवराज इन्द्र उनकी आँखें खुलने की प्रतीक्षा करते हुए इधर – उधर देखने लगे किन्तु उन्हें लोमश ऋषि का महल तो क्या एक कुटिया भी न दिखायी दी ।

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जब ऋषि ने आँखें खोली तब देवराज इन्द्र ने पुनः प्रणाम किया और कहने लगे – ऋषिवर ! आपने अपने रहने के लिए कोई घर नहीं बनाया । घर ! रहने के लिए । कहकर ऋषि हँसे ।



 लोमश ऋषि ने कहा- इन्द्रदेव ! यह शरीर नश्वर ( नष्ट होने वाला ) है । इसका क्या भरोसा । कब यह शरीर छूट जाये । तो वह बनाया हुआ घर यहीं रह जायेगा । जब वह घर साथ नहीं जायेगा तो क्यों बनायें । तब आश्चर्य चकित होकर इन्द्र ने कहा – ऋषिराज ! मैंने तो सुना है आपकी आयु कई हजार वर्ष है । हाँ ! आपने सही सुना है – इन्द्रदेव ! मेरी आयु बहुत लम्बी है ।

 मनुष्यों का सौ वर्ष देवताओं का एक दिन होता है इसके हिसाब से देवताओं आयु सौ वर्ष मानी गयी है , देवताओं के सौ वर्ष बीतने के बाद इन्द्र बदल जाते हैं ।

सौ इन्द्र के बदलने पर ब्रह्मा का एक रात दिन पूरा होता है और इस हिसाब से ब्रह्मा की सौ वर्ष आयु मानी गयी है । जब एक ब्रह्मा बदलते हैं तब मेरे शरीर का एक लोम ( रोये , बाल ) टूटता है ।

 मेरे शरीर के जब सारे रोम टूट जायेगे तब मेरी मृत्यु हो जायेगी फिर भी मैंने एक कुटिया ( झोपड़ी ) भी नहीं बनायी क्योंकि जानता हूँ कि मुझे भी परना है फिर झोपड़ी या महल बनाने में समय क्यों बर्बाद करूँ ।



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