Nilavanti Granth: नीलावंति ग्रन्थ का रहस्य जानकर दंग रह जाएंगे | Nilavanti Granth In Hindi

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Nilavanti Granth: नीलावंति ग्रन्थ का रहस्य जानकर दंग रह जाएंगे…

नीलावंती ग्रंथ (Nilavanti Granth) जिसे कर्णावती ग्रंथ के नाम से भी जाना जाता है, लंबे समय से एक प्राचीन किंवदंती बनी हुई है। दुनिया भर में इस पुस्तक के बारे में बहुत सी गलत जानकारी फैलाई जा रही है और इंटरनेट के समय में, बहुत से लोग इस पुस्तक की प्रतियों की तलाश कर रहे हैं। हालाँकि इस पुस्तक और इसके रहस्यों के बारे में सच्चाई का पता लगाना कठिन है।

हालाँकि, हम पाठकों को सावधान करना चाहते हैं कि नीलावंती पुस्तक दूर के रहस्यमय अतीत का एक पुराना अवशेष है और इस पुस्तक का पीछा करने के परिणाम होंगे। यदि आप उन लोगों में से हैं जो विज्ञान और वैज्ञानिक स्वभाव में विश्वास करते हैं या केवल पुस्तक के बारे में बुरा बोलने के लिए इसे पढ़ते हैं, तो कृपया सावधान रहें कि आपको यह पुस्तक नहीं पढ़नी चाहिए।

नीलावंती पुस्तक भारत में एक किंवदंती है, यह एक ऐसी पुस्तक है जिसमें अत्यंत गुप्त ज्ञान होता है जो पाठक को जानवरों से बात करने और बीमारियों को ठीक करने की शक्ति देता है। हालाँकि इसके कुछ दुष्प्रभाव भी हैं जो इसके पाठकों में मृत्यु या मानसिक टूटन का कारण बन सकते हैं।

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नीलावंती पुस्तक मंत्रों की एक पुस्तक थी जो पाठकों को जानवरों से बात करने, बीमारियों को ठीक करने आदि जैसी शक्तियाँ प्रदान करती थी।

इस पुस्तक पर ब्रिटिश सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था क्योंकि इसमें लोगों को शक्तियाँ दी गई थीं और कुछ लोग इसे पढ़ने के बाद पागल हो गए थे।

कि एक निश्चित हैबती बाबा के पास यह पुस्तक थी और महाराष्ट्र के एक निश्चित महाराज के पास भी इस पुस्तक के कुछ पृष्ठ थे।

 

भारत सरकार भी सक्रिय रूप से पुस्तक पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश कर रही है

नीलवंती ग्रंथ एक ऐसी पुस्तक है जो आपको रातोंरात अमीर बना सकती है।

नीलावंती ग्रंथ एक ऐसी पुस्तक है जो एक धर्मपरायण गृहिणी की कहानियों पर आधारित है, जिसने वेदों, गणित और विशेष रूप से पक्षियों और जानवरों की भाषा का ज्ञान प्राप्त किया था।

ऐसे कई समूह हैं जो मूल पांडुलिपि खोजने की कोशिश कर रहे हैं और उतने ही लोग नकली पुस्तकों के माध्यम से जल्दी पैसा कमाने की कोशिश कर रहे हैं।

मेरा मानना ​​है कि मूल संस्करण मराठी में लिखा गया था, जिसमें महिला को बचपन में हैबती बाबा नाम के एक भिक्षु ने मार्गदर्शन दिया था, जिसे उसने लोकगीतों के माध्यम से प्रसारित किया था। हैबती बाबा की एक तस्वीर संलग्न है।

 

भारत में नीलावंती ग्रंथ पर प्रतिबंध क्यों है? क्या इस पुस्तक का मूल संस्करण प्राप्त करना संभव है?

हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि नीलावंती ग्रंथ को भारत के कुछ क्षेत्रों में प्रतिबंधित कर दिया गया है। प्रतिबंध के सटीक कारणों का खोज परिणामों में स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है। हालांकि, यह अनुमान लगाया गया है कि पुस्तक में अंधविश्वास और प्रथाएँ हैं जो वैज्ञानिक रूप से मान्य नहीं हैं, जिससे पुस्तक में प्रस्तुत जानकारी की सटीकता और सुरक्षा के बारे में चिंताएँ पैदा हो सकती हैं

यदि आप नीलावंती ग्रंथ का मूल संस्करण प्राप्त करने या इसके बारे में अधिक जानने में रुचि रखते हैं, तो आप विद्वानों के स्रोतों, संस्कृत विभागों वाले विश्वविद्यालय पुस्तकालयों या प्राचीन ग्रंथों और शास्त्रों में विशेषज्ञता रखने वाले सांस्कृतिक और धार्मिक संस्थानों से परामर्श करने पर विचार कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, प्राचीन ग्रंथों की डिजिटल प्रतियों को होस्ट करने वाले ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर नीलावंती ग्रंथ से संबंधित संसाधन हो सकते हैं।

ध्यान रखें कि प्राचीन ग्रंथों तक पहुँचना और उनकी व्याख्या करना जटिल हो सकता है, खासकर अगर वे ऐसी भाषाओं में लिखे गए हों जो अब व्यापक रूप से बोली या समझी नहीं जाती हैं।

दोस्तो निलावंती ग्रंथ को भारत सरकार ने बैन कर दिया है क्योंकि इस ग्रंथ को एक श्रापित यक्षिणी के द्वारा लिखा गया है। ऐसा माना जाता है कि जिसने भी लालचवश इस किताब को पढने की कोशिश की उसकी मृत्यु हो गई या फिर वह पागल हो गया। जब बहुत सारे मामले आने लगे तो भारत सरकार ने ग्रंथ को पढने पर पूरी तरह से बैन लगा दिया।

 

निलावंती ग्रंथ की कहानी

दोस्तो यह बहुत समय पहले की बात है। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव मे एक आदमी था उसकी एक पत्नी और एक छोटी सी बच्ची थी। जब वह बच्ची पाँच वर्ष की हुई तो उसकी माँ की मृत्यु हो गई। इस बच्ची का नाम निलावंती था। निलावंती की माँ की मृत्यु के पश्चात निलावंती के पिता ने उस गाँव को छोड दिया और निलावंती को लेकर दूसरे गाँव मे चले गये। दोस्तो निलावंती के पिता जी को आर्युवेद का अच्छा खासा ज्ञान था। निलावंती भी अपने पिता से आर्युवेद का ज्ञान लेती थी। निलावंती के अंदर एक खासियत थी कि वह पेड पौधो, जानवरों, पशु पक्षियों सब की भाषा समझती थी।

 

यही नही निलावंती के स्वप्न मे शैतान भी आते थे और निलावंती को जमीन के नीचे गडे हुये धन दौलत के बारे मे जानकारी देते थे लेकिन निलावंती के अंदर उसके पिता जी के अच्छे संस्कार थे इसीलिये वह सबकुछ जानते हुये भी धन दौलत जमीन के नीचे से खोदकर नही निकालती थी। निलावंती को पेड पौधे और शैतान जो भी मंत्र बताते थे वह पीपल के पत्ते से बनी किताब पर लिख लेती थी। जब निलावंती 20 से 22 वर्ष की हो गई तब जो भूतप्रेत निलावंती के स्वप्न मे आते थे वो हकीकत मे सामने आने लगे।

कुछ समय बाद निलावंती को पता चलता है कि कि वो एक श्रापित यक्षिणी है जो कि एक श्राप की वजह से इस दुनिया से बाहर नही निकल पा रही है उसे अपनी दुनिया मे जाना था। यह सब बात वह अपने पिताजी को बताती है। तब उसके पिता जी उससे कहते है कि बेटी यदि तू इस दुनिया की नही है और किसी श्राप के कारण तू इस दुनिया मे फसी हुई है तो मै तुझे नही रोकूंगा अतः तू स्वेच्छा से यहाँ से जा सकती है। फिर निलावंती उस गाँव को छोडकर जाने लगी कि रास्ते मे उसे एक व्यापारी मिलता है अतः निलावंती उस व्यापारी से दूसरे गाँव मे जाने के लिये कहती है क्योंकि निलावंती को एक अच्छी आत्मा ने बताया था कि यहाँ से 35 मील की दूरी पर तुम्हें एक गाँव मिलेगा और उस गाँव मे तुम्हें एक बरगद का पेड मिलेगा।

 

वही से तुम्हे अपनी दुनिया मे जाने का रास्ता मिलेगा इसके अलावा तुम्हे अपने रक्त के साथ-साथ पशु पक्षियों की भी बली देनी होगी। इसी को ध्यान मे रखते हुये वह निलावंती उस व्यापारी से उस गाँव मे चलने के लिये कहती है। वह व्यापारी निलावंती को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाता है और कहता है कि मै तुम्हें उस गाँव मे छोड दूँगा लेकिन बदले मे तुम्हे मुझसे शादी करनी पडेगी। निलावंती ने व्यापारी के सामने मुसकराते हुये कहा कि ठीक है मुझे मंजूर है लेकिन मेरी एक शर्त है कि रात के समय मै तुम्हारे साथ नही रहूँगी मै कहा जाती हूँ क्या करती हूँ इसके बारे मे तुम मुझसे कुछ नही पूछोगे। व्यापारी ने कहा कि ठीक है मुझे मंजूर है। उसके बाद वह व्यापारी निलावंती को अपने बैलगाड़ी मे बिठाकर उस गाँव मे ले गया।

 

फिर शर्त के अनुसार निलावंती ने उस व्यपारी से विवाह कर लिया। रात के समय निलावंती प्रतिदिन बरगद के पेड के नीचे तंत्रमंत्र करने के लिये चली जाती थी वहाँ पर वो अपना रक्त और पशु पक्षियों की बली भी चढाती थी। एक दिन रात के समय जब निलावंती तंत्रमंत्र उस बरगद के पेड के नीचे कर रही थी उसी समय उस गाँव के कुछ लोग निलावंती को पशु पक्षियों की बली देते हुये देख लेते है और उस व्यापारी को जाकर सारी घटना की जानकारी देते है। जब अगली रात को निलावंती अपने समय के अनुसार रात मे तंत्रसाधना के लिये निकलती है तो उसके पीछे-पीछे वह व्यापारी भी चला जाता है और निलावंती को तंत्रसाधना करते हुये देख लेता है।

 

अगले दिन निलावंती के स्वप्न मे शैतान आता है और उससे बताता है कि निलावंती कल जब तुम तंत्रसाधना के लिये बरगद के पेड के नीचे जाओगी उसी समय बरगद के पेड के बगल से जो नदी बहती है उस नदी मे तुम्हें एक लाश बहती हुई दिखाई देगी उस लाश के गले मे एक ताबीज होगा तुम्हें उसे खोल लेना है गले से ताबीज को निकालने के बाद उसी नदी मे तुम्हे एक नाव पर सवार आदमी मिलेगा तुम्हें इस ताबीज को उस आदमी को दे देना है वह तुम्हें दूसरी दुनिया के दरवाजे तक पहुचाने मे तुम्हारी मदद करेगा। उस शैतान ने निलावंती से यह भी कहा कि तुम्हे अपनी दुनिया मे वापस लौटने का सिर्फ यही एक ही चांस मिलेगा दोबारा चांस तुम्हें नही मिलेगा।

 

अगले दिन निलावंती बहुत खुश हुई और रात के समय बरगद के पेड के नीचे चली गई। वह तंत्र साधना करके अपनी रक्त की तथा पशु पक्षी की बली दे ही रही थी कि उसे नदी के किनारे एक लाश बहती हुई दिखाई देती है। निलावंती उस लाश के पास जाती है और उसके गले मे बधे हुये ताबीज को निकालने की कोशिश करती है। उसी समय वहाँ पर वह व्यापारी भी आ गया जो अपने असली शैतानी रूप मे आ गया था। वह ताबीज की पहली गाँठ खोल पाई थी दूसरा खोलने ही वाली थी कि गाँव वाले वहाँ आ गये और निलावंती को नरभक्षी समझकर कहने लगे कि ये दोनो शैतान है ये दोनो तो सभी गाँव वालो को मार डालेंगे अतः इन दोनो को मार डालो।

 

सभी गाँव वालो ने अपने-अपने हथियार लेकर दोनो को दौडा लिया निलावंती तो बच गई लेकिन गाँव वालो ने उस राक्षस को मार गिराया। राक्षस होने की वजह से वह दोबारा जीवित हो उडा और निलावंती के पास आकर बोला कि तुम मुझे ये किताब दे दो जिसमे तुमने मंत्रो को लिखा है और मुझे कुछ नही चाहिये। तब निलावंती ने सोचा कि यदि यह किताब इस शैतान को मिल गया तो यह दुनिया के लिये अनर्थ साबित हो सकता है अतः निलावंती ने उस किताब को श्रापित करते हुये कहा कि

जिसने लालच मे आकर इस किताब को पूरा पढ लिया उसकी तुरंत मृत्यु हो जायेगी और जिसने इस किताब को आधा पढकर बीच मे ही छोड दिया वह पागल हो जायेगा। यह कहकर निलावंती उस किताब को लेकर भाग गई। उसके बाद निलावंती का आज तक पता नही चला कि वह कहा गई। कुछ समय पश्चात वह किताब एक साधू को मिलती है उस साधू के मन मे किसी भी तरह का कोई लालच नही था। चूंकि वह किताब दूसरे भाषा मे लिखी गई थी अतः उस साधू ने उसे सरलतम रूप मे अनुवाद करके लिखा ताकि सबको समझ मे आ जाये।

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